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जब मुख्यमंत्री के बेड पर सो गए सीनियर MLA, रात भर फर्श पर दर्द सहते रह गए थे कर्पूरी ठाकुर…

बात 1977 की है जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।

बिहार में भी विधानसभा चुनावों में जनता पार्टी की जीत हुई थी। 324 सीटों में से 214 सीटों पर जनता पार्टी की जीत हुई थी। कर्पूरी ठाकुर को तब मुख्यमंत्री बनाया गया था।

ठाकुर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। अपने मंत्रिमंडल विस्तार पर जनता पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व के साथ चर्चा करने के लिए कर्पूरी ठाकुर दिल्ली गए हुए थे। वह बिहार भवन में ठहरे हुए थे।

बिहार के कई विधायक भी उस वक्त नई दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। ये सभी मंत्री बनने के लिए लॉबिंग कर रहे थे। कई विधायक जनता पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व के साथ मीटिंग करना चाहते थे तो कुछ कर्पूरी ठाकुर के साथ मंत्री बनाने के लिए मिलना चाहते थे।

कर्पूरी ठाकुर अहले सुबह ही बिहार भवन से निकल जाया करते थे और देर रात लौटा करते थे। ऐसे में बिहार से आए ऊंची जाति के एक विधायक मंत्री बनने की हसरत लिए कर्पूरी ठाकुर से मिलने बिहार भवन आ पहुंचे।

बाढ़ से बुजुर्ग विधायक राणा शिलोखपति सिंह ठाकुर समुदाय से संबंध रखते थे। उन्होंने देखा कि मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर बिहार भवन के अपने कमरे में नहीं हैं।

उन्हें पता चला कि वह देर रात तक लौटेंगे। तब राणा साहब मुख्यमंत्री के ही बेडरूम में उनके ही बेड पर सो गए। उन्होंने यह सोचा कि जब मुख्यमंत्री देर रात में आएंगे तो उन्हें जगाएंगे और तब उनसे मंत्री बनने की ख्वाहिश जाहिर कर देंगे।

कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर के मुताबिक, जब देर रात कर्पूरी ठाकुर बिहार भवन लौटे और अपने बेडरूम में गए तो देखा कि उनके बेड पर बुजुर्ग विधायक राणा साहब सो रहे हैं तो उन्होंने उन्हें नहीं जगाया बल्कि खुद फर्श पर बिछे कालीन पर सो गए।

जब आधी रात राणा साहब बाथरूम जाने के लिए जगे तो वह कर्पूरी ठाकुर की कलाई कुचलते चले गए। उन्हें ये आभास ही नहीं रहा कि मुख्यमंत्री के बेडरूम में कोई नीचे फर्श पर भी सो सकता है। बहरहाल, राणा साहब बाथरूम से आकर फिर सो गए।

उधर, कर्पूरी ठाकुर की कलाई में भारी दर्द होने लगा था। बावजूद इसके वह उसे सहते रह गए। कर्पूरी ठाकुर ने जानबूझकर किसी को कुछ नहीं कहा।

जब राणा साहब जगे, तब तक कर्पूरी ठाकुर नहा-धोकर तैयार होकर बिहार भवन से जा चुके थे। बाद में उस वक्त कर्पूरी जी के निजी सचिव रहे लक्ष्मी साहू ने ये बातें कुछ लोगों को बताई थीं।

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