अक्षय तृतीया पर्व छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में यह ‘अक्ती’ के नाम से प्रसिद्ध
रायपुर
छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया पर्व ‘अक्ती’ के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि महामुहूर्त यानी अक्षय तृतीया के दिन परिवार में मांगलिक कार्य अवश्य करना चाहिए। जिन परिवारों में विवाह योग्य बेटे-बेटी होते हैं, उनके लिए अच्छा रिश्ता ढूंढकर अक्षय तृतीया के दिन विवाह कराया जाता है।
यदि किसी का रिश्ता तय न हो तो भी उस परिवार में नकली दूल्हा-दुल्हन रूपी गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाने की परंपरा निभाई जाती है। छोटे बच्चे बाजार से गुड्डा-गुड़िया खरीदकर लाते हैं और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर नकली विवाह रचाने का खेल खेलते हैं। भगवान श्री गणेश, विष्णु की पूजा करके परिवार में मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जाती है।
चार सर्वश्रेष्ठ मुहूर्तों में से एक
हिंदू पंचांग में पूरे वर्ष में चार ऐसे मुहूर्त हैं, जिनमें पंचांग देखे बिना शुभ संस्कार संपन्न किया जा सकता है। इनमें माघ माह में वसंत पंचमी, कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी और भड़ली नवमी तथा वैशाख माह में अक्षय तृतीया को विशेष महत्व दिया गया है।
विवाह के रीति-रिवाजों की सीख
अक्षय तृतीया के दिन विवाह रचाने का उद्देश्य परिवार में मांगलिक कार्य संपन्न करना होता है। साथ ही परिवार के बच्चों को विवाह में निभाई जाने वाली रस्मों के बारे में सिखाया जाता है।
विवाह से पूर्व देवी-देवताओं का आह्वान करके घर में स्थापित करना, देवी-देवता की मूर्ति बनाने के लिए तालाब से मिट्टी लाने की रस्म निभाई जाती है। इसे चूलमाटी की रस्म निभाना कहते हैं।
इसके अलावा अनेक रस्म निभाई जाती है, जिनमें दुल्हा-दुल्हन को उबटन, तेल, हल्दी लगाने, मौर-मुकुट बांधने, अग्नि के फेरे लेने, दुल्हन की बिदाई और ससुराल में दुल्हन का स्वागत करने की रस्मों की जानकारी दी जाती है।
चार धाम यात्रा का शुभारंभ
वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन से उत्तराखंड के प्रमुख चार धाम की यात्रा का शुभारंभ होता है। उत्तराखंड के चार धामों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री शामिल हैं। शीतकाल में केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं। अक्षय तृतीया के दिन पूजा-अर्चना करके मंदिर के पट खोले जाते हैं।
सतयुग-त्रेतायुग का शुभारंभ
ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। इसलिए इसे युगादि तिथि कहा जाता है। भगवान परशुराम का अवतरण : यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया था। परशुराम ने अत्याचारियों का संहार करके पृथ्वी को पापियों से मुक्त कराया।
जैन तीर्थंकर ने किया था व्रत का पारणा
जैन धर्म में अक्षय तृतीया को विशेष महत्व दिया गया है। जैन तीर्थंकर ने 12 वर्ष तक व्रत किया और अक्षय तृतीया के दिन इक्षु रस यानी गन्ना रस का सेवन कर व्रत का पारणा किया। जैन धर्म के लोग अक्षय तृतीया को आखातीज के रूप में मनाते हैं। घर-घर में गेहूं, मूंग को कूटकर बनाई गई खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।
इस दिन किए जाने वाले शुभ संस्कार
अक्षय तृतीया पर सगाई, विवाह, जनेऊ, बच्चों का मुंडन, गृह प्रवेश, भूमि पूजन आदि संस्कार संपन्न करना शुभ माना जाता है। इस दिन व्यवसाय प्रारंभ करने से प्रगति हाेती है।
जिस परिवार में किसी और तिथि में विवाह तय हुआ हो, वे भी विवाह में उपयोग में आने वाली सामग्री पर्रा, सूपा, टोकनी, साफा, पगड़ी, तोरण, कटार, पूजन सामग्री की खरीदारी अक्षय तृतीया के दिन ही करना शुभ मानते हैं।
शुभ अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण, रजत, कांस्य, तांबा, पीतल आदि धातुओं की खरीदारी को शुभ माना जाता है। चूंकि, अक्षय का अर्थ है, जिसका कभी क्षय न हो, इसलिए ऐसी धातु खरीदी जाती है, जो हमेशा अक्षय रहे। स्वर्ण धातु खरीदने से परिवार में समृद्धि बढ़ती है।