5000 साल पुराना गणपति का ऐसा मंदिर जहां मेल से मन्नत भेजते हैं भक्त
गणेश चतुर्थी पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है, और इस दिन भगवान गणेश का जन्मोत्सव होता है. आज इस खास मौके पर हम आपको भगवान गणेश के एक खास मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो 5 हजार साल पुराना है और अपनी अनूठी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है.
राजकोट जिले के उपलेटा से 24 किलोमीटर दूर ढाक गांव में स्थित श्री गणेश जी का मंदिर प्राकृतिक परिवेश में बसा हुआ है. इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश सिंह पर विराजमान हैं, जो अन्य मंदिरों से अलग है. यहां के पुजारी भरतगिरि दयागिरि गोस्वामी बताते हैं कि यह सिद्धिविनायक गणेश मंदिर स्वतः प्रकट हुआ था और यह गणपति त्रेतायुग के काल से संबंधित हैं.
सपने में गणेश जी का आना और स्थापना मंदिर के इतिहास के बारे में पुजारी ने बताया कि लगभग 5हजार साल पहले एक भक्त के सपने में भगवान गणेश आए और उन्होंने उससे कहा, “तुम मुझे जमीन से बाहर निकालो.” भक्त ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और उनकी मूर्ति को बाहर निकालकर स्थापित किया, तब से यह स्थान गणपति की पूजा का केंद्र बन गया.
पुजारी के अनुसार, हर युग में भगवान गणेश का वाहन अलग होता है. सतयुग में गणेश जी का वाहन मोर, त्रेतायुग में सिंह, द्वापरयुग में चूहा और कलयुग में घोड़ा होता है. इस मंदिर में भगवान गणेश सिंह पर विराजमान हैं, जो त्रेतायुग के समय से यहां पूजे जाते हैं. इस मंदिर में गणेश चतुर्थी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है और भक्तों का विश्वास है कि यहां की गई हर प्रार्थना पूरी होती है.
जो भक्त मंदिर में व्यक्तिगत रूप से नहीं आ सकते, वे अपने दुख-दर्द भगवान गणेश को मेल के जरिए भेजते हैं. मंदिर के पुजारी गर्भगृह में गणपति जी के समक्ष अकेले में इन पत्रों को पढ़ते हैं. इस अनोखी परंपरा के कारण, दूर-दूर से भक्त, विशेषकर मुंबई, पुणे और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों से, इस मंदिर में दर्शन करने और अपनी आस्था व्यक्त करने आते हैं. गणेशोत्सव के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है.
यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता बल्कि अनूठी मान्यताओं और भक्ति-भाव के लिए भी प्रसिद्ध है, जो इसे गणेश भक्तों के बीच एक पवित्र स्थल बनाता है.