विदेश

भारत से कई समझौते खत्म करने की तैयारी में बांग्लादेश, चला सकता है रिश्तों पर कैंची…

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत के साथ किए गए कई मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoUs) को रद्द कर सकती है।

खबरें हैं कि मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ऐसे समझौतों की समीक्षा की तैयारी कर रही है, जो बांग्लादेश के लिए फायदेमंद नहीं हैं।

हालांकि, अब तक बांग्लादेश की ओर से ऐसे किसी MoUs के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।

इसके अलावा अंतरिम सरकार ने साफ किया है कि अगर कानूनी रूप से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस लाना जरूरी होता है, तो प्रत्यर्पण की कोशिश की जाएगी।

बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर पूर्व में हस्ताक्षर किए हुए कुछ समझौते मुल्क के लिए गैर फायदेमंद पाए जाते हैं, तो अंतरिम सरकार उनकी समीक्षा कर सकती है या कैंसिल भी कर सकती है।

हालांकि, इसे लेकर अब तक अंतरिम सरकार की ओर से आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने कई रिपोर्ट्स के हवाले से लिखा है कि हाल ही में अंतरिम विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने हाल ही में कहा है कि MoUs बाध्यकारी समझौते नहीं हैं और इन्हें संशोधित किया जा सकता है या वापस भी लिया जा सकता है।

अखबार से अनुसार, बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स ने OIC यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन की बैठक से लौटने के बाद हुसैन ने कहा, ‘MoUs समझौते नहीं हैं।

उनमें हमेशा संशोधन किया जा सकता है। अगर बांग्लादेश सरकार को लगता है कि उन MoUs से कोई फायदा नहीं है, तो उनकी हमेशा समीक्षा की जा सकती है।’

उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को लगता है कि ये MoUs देश के हित में नहीं हैं, तो इनपर दोबारा विचार किया जा सकता है।

क्या हो सकती है वजह

रिपोर्ट के अनुसार, कई राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अंतरिम सरकार को लगता है कि शेख हसीना प्रशासन के भारत के साथ करीबी संबंध थे और हो सकता है कि MoUs पर हस्ताक्षर करते समय भारतीय हितों का खास ध्यान रखने के लिए मजबूर होना पड़ा हो। जून 2024 में शेख हसीना प्रशासन ने भारत के साथ कुल 10 MoUs पर हस्ताक्षर किए थे। इनमें से 7 नए थे और 3 को रिन्यू किया जाना था।

रडार पर भारत से जुड़े प्रोजेक्ट्स

खबरें हैं कि बांग्लादेश को दिए जाने वाले भारतीय कर्ज को लेकर भी अनिश्चितताएं बनी हुईं हैं। प्लानिंग मंत्रालय इंडियन लाइन ऑफ क्रेडिट्स (LOCs) के जरिए जारी और प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स की समीक्षा कर रहा है।

अखबार ने प्रोथोम एलो की रिपोर्ट के हवाले से लिखा कि प्रोजेक्ट्स के हितधारकों को लगता है कि ये LoCs खासतौर से भारतीय हितों से जुड़े हैं। रिपोर्ट में आशुगंज से अखौरा तक फोर लेन रोड का जिक्र किया गया है।

भारत ने तीन LoCs के जरिए 2010, 2016 और 2017 में कुल 7.36 बिलियन डॉलर का लोन देने का वादा किया है। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक सिर्फ 1.80 बिलियन डॉलर ही जारी किया गया है। 3 LoCs के तहत कुल 36 प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।

तीस्ता जल बंटवारा संधि पर फिर बात करना चाहता है बांग्लादेश

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में जल संसाधन मामलों की सलाहकार सैयदा रिजवाना हसन ने कहा है कि सरकार तीस्ता जल बंटवारा संधि पर भारत के साथ बातचीत फिर से शुरू करना चाहती है। उन्होंने कहा कि ऊपरी तटवर्ती और निचले तटवर्ती देशों को जल बंटवारे पर अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

ढाका में ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में हसन ने भरोसा जताया कि भारत के साथ तीस्ता संधि एवं अन्य जल बंटवारा संधियों पर विवाद को बातचीत के जरिए सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लिया जाएगा लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि अगर किसी समझौते पर नहीं पहुंचा जा सका तो बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय वैधानिक दस्तावेजों और सिद्धांतों पर विचार कर सकता है।

उन्होंने रविवार को एक साक्षात्कार में ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘मैंने (बांग्लादेश में) सभी संबंधित पक्षकारों से तीस्ता जल बंटवारा मुद्दे पर चर्चा की है। चर्चा में हम इसी नतीजे पर पहुंचे कि तीस्ता संधि के संबंध में हमें प्रक्रिया और संवाद को फिर से शुरू करने की आवश्यकता है। हमें गंगा संधि पर भी काम करना है जिसकी मियाद दो साल में पूरी होने वाली है।’

उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्ष सहमत हैं और तीस्ता जल-बंटवारा संधि का मसौदा तैयार है। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के विरोध के कारण समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया। तथ्य यही है कि हम समझौते को अंतिम रूप नहीं दे पाए। इसलिए हम समझौते के मसौदे के साथ उस बिंदु से शुरुआत करेंगे और भारत से आगे आकर वार्ता प्रक्रिया को पुनः आरंभ करने का आग्रह करेंगे।’

भारत और बांग्लादेश तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 2011 में ढाका यात्रा के दौरान तीस्ता जल बंटवारा संधि पर हस्ताक्षर करने वाले थे लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में पानी की कमी का हवाला देते हुए इस पर सहमति देने से इनकार कर दिया।

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