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आतंकी हमले, ढहा शेयर बजार, नतीजों के बीच हिंसा का डर; यह कैसा चुनाव करा रहा पाकिस्तान

गले तक कर्ज में डूबे पाकिस्तान में ऐसे वक्त पर चुनाव हो रहा है जब जनता में खौफ है।

चरमरा चुके सियासी ताने-बाने के बीच पाकिस्तान में इस बात का डर है कि कहीं चुनाव के नतीजों के बाद हिंसा न भड़क जाए।

पाकिस्तान में गुरुवार को हुए चुनाव के दौरान आतंकी हमले हुए। इस हमले में 10 सुरक्षाकर्मियों सहित कम से कम 12 लोग मारे गए।

इसके अलावा सरकारी बलों ने मतदान को बाधित करने के उद्देश्य से किए गए 51 आतंकवादी हमलों को नाकाम कर दिया। इनमें ज्यादातर हमले खैबर-पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत में हुए।

ढहा पाकिस्तानी शेयर बाजार
पाकिस्तान निर्वाचन आयोग (ईसीपी) ने धांधली, छिटपुट हिंसा और देशभर में मोबाइल फोन सेवा बंद होने के आरोपों के बीच हुए मतदान के समाप्त होने के 10 घंटे से अधिक समय बाद शुक्रवार देर रात चुनावों के नतीजों की घोषणा करनी शुरू की।

जिसके बाद पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज का बेंचमार्क केएसई-100 सूचकांक शुक्रवार को 1,700 अंक नीचे चला गया। इसकी वजह चुनाव परिणामों की घोषणा में हो रही देरी और किसी एक दल को बहुमत न मिलना माना जा रहा है।

पीएसएक्स वेबसाइट ने कहा कि शुक्रवार को कारोबार शुरू होने के तुरंत बाद सूचकांक 2,278 अंक गिर गया। इसके बाद यह थोड़ा संभला और दोपहर तक 1,720.27 अंक या 2.68 प्रतिशत की गिरावट के साथ 64,143.87 के पिछले बंद स्तर से 62,423.60 अंक पर पहुंच गया।

हो सकती है हिंसा
मौजूदा वक्त में पाकिस्तान में किसी पार्टी को बहुमत नहीं दिख रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि यदि कहीं चुनाव के नतीजे किसी पार्टी के मन मुताबिक नहीं हुए तो कत्ले-आम मच जाएगा।

मतदान के दौरान देश भर में मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं के बाधित होने से राजनीतिक दल परेशान हो गए और मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता पर संदेह पैदा कर रहे हैं।

पाक मीडिया ने उनके हवाले से कहा है कि पार्टियां आशंकित हैं कि चुनाव तो सिर्फ बहाना है और जीतेगा तो सिर्फ सेना का पिट्ठू ही। पाक मीडिया की रिपोर्ट है कि सेना का पूरा सपोर्ट नवाज शरीफ के साथ है। इसलिए उनके जीतने की पूरी संभावना है।

दरअसल, पाकिस्तान में हमेशा से सत्ता पर बैठे राजनीतिक पार्टियों पर सेना का प्रभाव रहा है। इमरान खान ने 2018 में प्रधानमंत्री पद संभाला था।

ऐसा दावा किया जाता है कि इमरान को गद्दी तब मिल पाई थी क्योंकि तत्कालीन सेना चीफ कमर जावेद बाजवा का हाथ उनके सिर पर था।

हालांकि कार्यकाल पूरा होने से पहले ही बाजवा और इमरान में बिगड़ गई और इमरान को अपनी गद्दी से हाथ धोना पड़ा। अब बाजवा की जगह असीम मुनीर आ चुके हैं।

सेना प्रमुख तो बदल गया लेकिन, पाकिस्तान में हालात नहीं बदले। पाकिस्तानी मीडिया लगातार दावा करता रहा है कि इस बार जनता का पूर्ण समर्थन नवाज शरीफ के साथ है।

हालांकि सच्चाई इसके ठीक उलट है। जनता का साथ हो या न हो लेकिन, सेना इस बार नवाज शरीफ के सिर पर हाथ रखे हुए है और दूसरी तरफ सेना पर उंगली उठाने वाले इमरान खान जेल में बंद हैं।

चुनाव के दौरान पूरे दिन न फोन चला न इंटरनेट
जियो टीवी की रिपोर्ट है कि देशभर के 95 हजार से ज्यादा केंद्रों में वोटों की गिनती चल रही है। चुनाव के दौरान सबसे बड़ा झोल यह रहा कि 8 फरवरी को चुनाव के दौरान पूरे देश में न मोबाइल चला और न ही इंटरनेट सेवा।

आम चुनावों में इस व्यवधान के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा को एक पत्र भी लिखा। राजनीतिक दलों ने चिंता जताई कि चुनाव के नाम पर देश की जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है।

लोग अपने परिजनों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। तमाम राजनीतिक पार्टियों ने इस कार्य के पीछे सेना और नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन की मिलीभगत की आशंका जताई है।

चुनाव के दिन ही आतंकी हमला
पाकिस्तान में चुनाव के दौरान ही आतंकवादी हमला हुआ है।

चुनाव के दिन देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा की घटनाएं हुई हैं। बलूचिस्तान में आज दो बम धमाके हुए। इस आतंकवादी हमले में 4 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई।

मतदान केंद्रों में भारी झोल
पाकिस्तान में मतदान के दौरान भी कई केंद्रों में भारी झोल देखने को मिला। पीटीआई ने आरोप लगाया कि उनके गढ़ों वाले मतदान केंद्रों पर सुबह 11 बजे तक भी मतदान शुरू नहीं हो पाया था।

जबकि वोटिंग टाइम सुबह 8 बजे निर्धारित था। लोगों को वोट नहीं देने दिया। इसके अलावा पार्टी ने आरोप लगाया कि कई जगह लोग बिना वोट के ही घर चले गए।

इस आधार पर पीटीआई ने चुनाव आयोग से मतदान का समय बढ़ाने का अनुरोध किया था लेकिन, आयोग ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया। 

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